जिन्दगी का एक हिस्सा खालीपन भी होता है,जिसको समय समय पर किसी न किसी तरीके से भरना पड़ता है,ठीक वैसे ही जैसे गोदाम खाली हो जाने पर उसमें नया माल लाकर भरा जाता है।पर इस गोदाम और उस गोदाम में बहुत अन्तर होता है।वो गोदाम तो भर जाने के बाद भरा लगता है,पर इस गोदाम में कई बार बहुत कुछ भरने के बाद भी खालीपन महसूस होता है।और पता करने पर भी पता नहीं चलता है कि इसमें क्या भरा जाये कि खालीपन न लगे,पर इसका एहसास ठीक समय पर ही होता है और ठीक समय आने पर ही यह किसी न किसी के द्वारा भर दिया जाता है।ये ऐसा खालीपन होता है जो दिखता नहीं है,बस महसूस होता है अन्दर ही अन्दर ।ये कचोटता है पूरे तन बदन को।ये समय समय पर आपको एहसास कराता है कि कुछ तो है जिसकी कमी है ,पर कमबख्त ये इतना दुष्ट होता है कि बताता ही नहीं कि किसकी कमी है और ये खालीपन कैसे भरा
जायेगा।और बताये भी क्यों अगर इतनी आसानी से बता देता ,तो फिर इतनी दिक्कत ही क्यों होती है,पर ये भी खेल खेलता है चौसर की तरह जिसमें दाँव लगाना पड़ता है,अगर जीत गये तो बहुत कुछ मिल जायेगा और हार गये तो मिला हुआ भी वापस चला जायेगा। ये जिन्दगी सच में लगता है जैसे कोई जीता जागता मनुष्य है जो दिखायी तो नहीं देता पर सारी कलाकारी जानता है….